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100 साल की उम्र में दुनिया अलविदा कहने वाला भारतीय क्रिकेटर,जो पेंटेंगुलर और रणजी ट्रॉफी दोनों में खेले

सबसे बड़ी उम्र के फर्स्ट क्लास क्रिकेटर रूसी कूपर (Rustom Cooper) ने पिछले साल, 22 दिसंबर को अपना 100वां जन्म दिन मनाया था तो इस मौके पर उनके बारे में लिखा था (पढ़ें- भारत के 100 साल के जीवित क्रिकेटर

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti August 10, 2023 • 12:41 PM
 Rustom Cooper India's Oldest Cricketer Who Died At Age Of 100
Rustom Cooper India's Oldest Cricketer Who Died At Age Of 100 (Image Source: Google)
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सबसे बड़ी उम्र के फर्स्ट क्लास क्रिकेटर रूसी कूपर (Rustom Cooper) ने पिछले साल, 22 दिसंबर को अपना 100वां जन्म दिन मनाया था तो इस मौके पर उनके बारे में लिखा था (पढ़ें- भारत के 100 साल के जीवित क्रिकेटर रुस्तम सोराबजी कूपर,जो पेंटांगुलर्स और रणजी ट्रॉफी दोनों खेले )। अब उनका देहांत हो गया है। उनके जिक्र में ये जरूर लिखा जाता है कि निधन तक रुस्तम, अकेले ऐसे जीवित भारतीय थे जो देश की आजादी से पहले के टूर्नामेंट पेंटेंगुलर में खेले (पारसी टीम के लिए 1941-42 से 1944-45 तक) और रणजी ट्रॉफी में भी।

ये पेंटेंगुलर कौन सा टूर्नामेंट है? इस सवाल का जवाब आपको ये भी बताएगा कि रणजी ट्रॉफी से पहले भारत में कौन से टूर्नामेंट खेले जाते थे? 

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भारत में सबसे पहले प्रेसीडेंसी मैच खेले गए बॉम्बे जिमखाना के यूरोपीय मेंबर और पारसी क्रिकेट क्लब के पारसियों के बीच- ये सालाना मैच 1877 में शुरू हुए। पहला मैच दो दिन का था और ड्रा रहा।1878 में भी खेले पर 1879 से 1883 तक, बॉम्बे के पारसी और हिंदू, बॉम्बे मैदान के नाम से मशहूर ग्राउंड के इस्तेमाल के हक़ पर आपस में उलझते रहे और क्रिकेट रुक गया। विवाद का निपटारा होने के बाद 1884 में ये मैच फिर से शुरू हुए।

1892-93 के मैचों को फर्स्ट क्लास का दर्जा मिला और 26 अगस्त 1892 से बॉम्बे जिमखाना में शुरू हुआ मैच, भारत में पहला फर्स्ट क्लास मैच मानते हैं। इनकी लोकप्रियता देखकर हिंदू जिमखाना ने भी तब तक एक बेहतर टीम बनाना शुरू कर दिया था और 1906 में, हिंदुओं ने पारसियों को मैच की चुनौती दी। वे तो नहीं माने पर बॉम्बे जिमखाना ने अपने आप कहा कि वे खेलेंगे और फरवरी में पहला यूरोपीय-हिंदू मैच खेला गया जिसमें हिंदू टीम को जीत मिली।  

इस पर हिंदू टीम को नियमित खेलने के लिए कहा और इससे, अगले साल यानि कि 1907 में, पहला ट्रायंगुलर टूर्नामेंट खेला गया- बॉम्बे जिमखाना, हिंदू जिमखाना और पारसी क्रिकेट क्लब की टीम के बीच। 1912 में, मोहम्मडन जिमखाना के मुसलमान भी बुला लिए इस मशहूर बॉम्बे टूर्नामेंट में खेलने जिससे ये क्वाड्रेंगुलर टूर्नामेंट बन गया। ये तो पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान भी खेला जाता रहा। 1917 के टूर्नामेंट से एक सनसनीखेज प्रयोग हुआ और विश्वास कीजिए- न्यूट्रल अंपायरों का इस्तेमाल हुआ। उससे पहले, बॉम्बे जिमखाना एक यूरोपीय अंपायर को हमेशा ड्यूटी पर लगाते थे। 

मैच की गिनती बढ़ी और मैच भी रोमांचक थे। कई सालों तक ये बॉम्बे में सबसे बड़े इवेंट में से गिने जाते रहे। संयोग से देश में स्वतंत्रता आंदोलन में आ रही तेजी में धर्म के आधार पर बनी टीम के खेलने का विरोध होने लगा। 1921 के टूर्नामेंट के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स बॉम्बे आए- इससे राजनीतिक दंगे भड़क उठे लेकिन टूर्नामेंट चलता रहा। प्रिंस फ़ाइनल के पहले दिन का खेल देखने भी आए। 

1920 के दशक तक, हर जिमखाना ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से खिलाड़ियों को अपनी टीम में लेना शुरू कर दिया था। इसकी कामयाबी  देखकर लाहौर, नागपुर और कराची में भी ऐसे टूर्नामेंट शुरू हो गए यानि कि क्रिकेट का तेजी से विकास हुआ। धर्म का एक बड़ा मसला 1924 में उठा- हिंदू जिमखाना ने बैंगलोर के पीए कनिकम को टीम में ले लिया पर बाद जब उन्हें पता चला कि वे हिंदू नहीं, ईसाई हैं तो उन्हें टीम से निकाल दिया।  

1930 में, नमक सत्याग्रह से देश में जोश की नई लहर शुरू हो गई और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच टूर्नामेंट रद्द कर दिया। 1934 तक इसे नहीं खेले। तब भी ये बॉम्बे पेंटेंगुलर बना- 1937 में द रेस्ट नाम की पांचवीं टीम को टूर्नामेंट में शामिल कर लिया। इसमें बौद्ध, यहूदी और भारतीय ईसाई शामिल थे और कुछ मौकों पर तो सीलोन के खिलाड़ी भी खिलाए। इसकी हर टीम में कम से कम एक हिंदू जरूर लेते थे। एक ख़ास बात- पहला पेंटेंगुलर सिर्फ चार टीम के बीच खेला था, क्योंकि हिंदुओं ने नए ब्रेबॉर्न स्टेडियम में सीटों का सही हिस्सा न दिए जाने के विरोध में अपना नाम वापस ले लिया था।

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1938 से, सांप्रदायिकता की झलक के कारण इसका विरोध बढ़ने लगा। नए बने बीसीसीआई ने 1946 में घोषणा की कि पेंटेंगुलर टूर्नामेंट रोक रहे हैं और इसकी जगह एक रीजनल टूर्नामेंट खेलेंगे। यहां से रणजी ट्रॉफी, जिसमें पूरे भारत की रीजनल टीम के बीच मैच खेले गए- बहुत जल्दी नेशनल चैंपियनशिप बन गई। रूसी कूपर इस पेंटेंगुलर और रणजी ट्रॉफी दोनों में खेले थे और ये रिकॉर्ड उनके नाम के साथ जुड़ गया।
 


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