Cricket Tales - जब टीम 78 रन भी नहीं बना पाई जीत के लिए

Updated: Sat, Apr 08 2023 22:36 IST
Cricket Tales (Image Source: Google)

Cricket Tales | क्रिकेट के अनसुने दिलचस्प किस्से - रणजी ट्रॉफी सीजन 2022-23 की एक ख़ास बात थी गुजरात-विदर्भ मैच। इसमें ख़ास बात थी गुजरात का जीत के लिए 73 रन भी न बना पाना और 54 रन पर ऑल आउट। कमाल किया आदित्य सरवटे ने और विदर्भ को भारत के फर्स्ट क्लास क्रिकेट के इतिहास में सबसे कम स्कोर का बचाव करने में मदद की- 73 रन। खब्बू सरवटे ने मैच में 11 विकेट लिए और विदर्भ ने गुजरात को 18 रन से हरा दिया। जो कम से कम स्कोर जीत के लिए नहीं बना, उसका पिछला रणजी ट्रॉफी रिकॉर्ड था 78 रन जो 1948-49 सीज़न में जमशेदपुर में दिल्ली के विरुद्ध बिहार ने बनाया था।

सरवटे ने ये कमाल किया था उसी नागपुर में जहां इससे लगभग एक महीने बाद, ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध अश्विन और जडेजा ऐसे ही चले और टेस्ट जीते। पिच फर्क थी- रणजी मैच एक साइड पिच पर था, जबकि टेस्ट एक सेंटर स्ट्रिप पर खेला गया। तब भी- मैच में पहले दिन 15 और अगले दिन 16 विकेट गिरे।

पुराने टेस्ट या वनडे इंटरनेशनल का ब्यौरा तो फिर भी कहीं मिल जाएगा- पुराने रणजी मैच का रिकॉर्ड पाना आसान नहीं। इसीलिए, 1949 में बिहार ने जो कमाल किया वह हैरान करने वाला तो था, पर उसका ज्यादा ब्यौरा उपलब्ध नहीं। इसे भारत में खेले सबसे रोमांचक मैचों में से एक गिनते हैं। जब सिर्फ 78 का बचाव करना हो तो कौन सी टीम जीत के बारे में सोचेगी? दिल्ली ने जब पिछली रात के 32/2 के स्कोर से आगे खेलना शुरू किया तो ये मान कर खेले कि मैच में सिर्फ वे जीतेंगे- दिल्ली टीम के मैनेजर को जीत का इतना भरोसा था कि उन्होंने जीत के जश्न के लंच के लिए इनविटेशन तक भेज दिए थे। जब सिर्फ 78 रन बनाने हों तो उनका ऐसा सोचना गलत नहीं था।

बात साफ़ है। सब संकेत भी दिल्ली के साथ थे- बिहार ने तब तक कोई रणजी ट्रॉफी मैच ही नहीं जीता था और इसके अतिरिक्त रिकॉर्ड ये था कि इससे पहले, सिर्फ एक बार, एक टीम ने (1892-93 में) भारत में दो अंक वाले फर्स्ट क्लास स्कोर का बचाव किया था। तब रिकॉर्ड बना था 98 रन का और पारसी टीम को, भारत टूर पर आई लॉर्ड हॉक इलेवन ने 90 रन पर आउट कर दिया था। यहां ये जानना बड़ा जरूरी है कि हॉक इलेवन में 6 टेस्ट खिलाड़ी थे जबकि पारसी क्रिकेटर इस स्तर के इंटरनेशनल अटैक को शायद पहली बार खेल रहे थे। इसके उलट, जब बिहार ने रिकॉर्ड बनाया तो उनके अटैक में सिर्फ एक स्टार, कप्तान शूते बनर्जी थे और वह भी तब 37 साल के थे। कमाल ये रहा कि यही शूते, रिकॉर्ड के लिए सबसे ख़ास गेंदबाज साबित हुए।

इस मैच की आगे चर्चा से पहले शूते बनर्जी के बारे में कुछ और बातें। वे 1936 और 1946 में इंग्लैंड टूर पर तो गए थे टीम इंडिया के साथ पर टेस्ट खेले बिना लौटे। इन में से भी वे 1946 टूर पर,बल्लेबाजी में एक रिकॉर्ड की वजह से ज्यादा चर्चा में रहे- नंबर 10 चंदू सरवटे और नंबर 11 बनर्जी ने आखिरी विकेट के लिए 249 रन जोड़े थे। 1948-49 में वेस्टइंडीज टीम भारत टूर पर आई। इलाहाबाद में वेस्टइंडीज ने ईस्ट जोन के विरुद्ध जो मैच खेला उसमें बनर्जी ने गजब की गेंदबाजी और उनका प्रदर्शन 7/67 था- मेहमान टीम उस पूरे टूर में यही एक मैच हारी थी। इससे एकदम वे बंबई टेस्ट की टीम में आ गए। वे बहरहाल एक ही टेस्ट खेले और उसमें 5 विकेट लेने के बावजूद करियर खत्म हो गया।

इन्हीं शूते बनर्जी और उनके साथी, 30 साल के खब्बू स्विंग गेंदबाज बिमल 'पोटला' बोस को दिल्ली के विरुद्ध आख़िरी सुबह 46 रन रोकने के लिए गेंदबाजी करनी थी। दिन था 23 जनवरी का जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म दिन था। दिन का खेल शुरू होने से पहले दोनों टीम के खिलाड़ियों ने नेताजी की फोटो पर माल्यार्पण किया, सैल्यूट किया और उसके बाद खेल शुरू हुआ।

46 में से 6 रन बने थे तो डॉ. रवि वैद (22) लाइन चूक गए और एलबीडब्ल्यू आउट हुए- स्कोर 38/3 था। यहां से विकेट गिरने का सिलसिला शुरू हो गया और बिशन बिहारी तथा लक्ष्मी चंद सक्सेना जल्दी जल्दी आउट हुए। पहली पारी में 51 रन बनाने वाले एच किशनचंद, बोस की गेंद पर कैच आउट हुए। दो रन और जोड़े गए तब बनर्जी ने रणजी ट्रॉफी के इतिहास में छठी हैट्रिक दर्ज की- ईश्वर दयाल, हरगोपाल सिंह और जियान कपूर सभी बोल्ड हुए।

दिल्ली का स्कोर 43/9 हो गया यानि कि 5 रन के अंदर 7 विकेट गंवा दिए थे। कप्तान किरण बहादुर और विकेटकीपर हरगोपाल बेरी ने 5 रन जोड़े और बनर्जी के बहादुर को आउट करते ही, 78 रन का पीछा करते हुए, दिल्ली की टीम, 38/2 के स्कोर से 48 रन पर आउट हो गई। बनर्जी (6/22) और बोस (4/25) ने दिल्ली की 21 ओवर की पारी के दौरान लगातार गेंदबाजी की थी।

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दिल्ली वाले देखते रह गए। लंच तो हुआ, पर न उन्हें और न उनके मेहमानों को मजा आया।

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