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कोरोना के मौजूदा दौर से पहले भी क्या कभी इंटरनेशनल क्रिकेटर क्वारंटीन में रहे थे?

कोविड19 से पहले भी क्रिकेट की दुनिया में खिलाड़ी क्वांरटीन में रहे थे, उस समय खिलाड़ियों का अनुभव भी काफी भयावह रहा था।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti March 23, 2022 • 11:33 AM
Cricket Image for कोरोना के मौजूदा दौर से पहले भी क्या कभी इंटरनेशनल क्रिकेटर क्वारंटीन में रहे थे?
Cricket Image for कोरोना के मौजूदा दौर से पहले भी क्या कभी इंटरनेशनल क्रिकेटर क्वारंटीन में रहे थे? (Image Source: Google)
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दुनिया भर के क्रिकेटर, 2020 में कोरोना की शुरुआत के बाद से जिस एक बात पर झल्ला रहे हैं, वह है लॉकडाउन की जरूरत। उनके लिए लॉकडाउन का मतलब है क्वारंटीन के नाम पर मैच/सीरीज शुरू होने से पहले होटल के कमरे में बंद होना। अब तो क्वारंटीन के दिन कुछ कम हुए हैं- अन्यथा दो हफ्ते का ये अकेलापन क्रिकेटरों के मनोविज्ञान पर असर डाल रहा था।  इस वजह से पिछली एशेज सीरीज तो रद्द होते-होते बची। आम तौर पर यही माना गया कि क्रिकेट ने ऐसा नजारा इससे पहले कभी नहीं देखा।

सच ये है कि क्रिकेट में क्वारंटीन का नजारा इससे पहले भी एक बार देखा जा चुका है- कब? रिकॉर्ड ये बताता है कि 1920-21 की सीरीज के लिए इंग्लिश क्रिकेटर RMS-Osterley नाम के शिप पर ऑस्ट्रेलिया के लिए रवाना हुए थे। तब कप्तान थे जेडब्ल्यूएचटी डगलस। शिप पहुंचा फ्रेमेंटल, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया। क्रिकेटरों को सीधे वहीं से क्वारंटीन में ले गए थे।

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अपने इस सफर के अनुभव को जैक हॉब्स ने अपनी ऑटो बायोग्राफी में 'भयानक' का नाम दिया था। उन्होंने 1935 की उस किताब में लिखा- 'रास्ता बड़ा लंबा था। शिप रास्ते में कोलंबो रुका। पहले से ही वहां एक मैच खेलने का इंतज़ाम था। क्रिकेटर शिप से, मैच खेलने स्टेडियम गए और जब तक वे लौटे- नजारा ही बदल गया था। उनकी गैर मौजूदगी में पता चला कि शिप में किसी को जान लेवा बुखार है और ये ऐसा बुखार है जो नजदीक वाले को भी हो जाएगा। जब क्रिकेटर लौटे तो शिप पर पीला झंडा लहरा रहा था। अगले दिन एक और मुसीबत आ गई- टीम के 8 क्रिकेटर पेट दर्द से बुरी तरह कराह रहे थे- कोलंबो में लंच में जो स्वादिष्ट झींगे (प्रॉन) खाए थे- ये उनकी 'मेहरबानी' थी।

खबर ऑस्ट्रेलिया पहुंच गई थी और वहां डर ये था कि कहीं ये क्रिकेटर अपने साथ उस बुखार का वायरस तो नहीं ले आए हैं? फ्रेमेंटल में, उन्हें एक हफ्ते के लिए क्वारंटीन के लिए गुडमैन प्वाइंट नाम की जगह पर ठहरा दिया। यहां सेना की हट थीं और गनीमत ये थी कि क्रिकेटरों को कमरे में बंद नहीं किया। वे खुली हवा में, वहीं फुटबॉल खेलते, नहाते रहते और तालाब में मछली पकड़ते।

एक दिन,जब पार्किन और कुछ और क्रिकेटर ताश खेल रहे थे, तो हॉवेल एक मरी हुई बड़े आकार की छिपकली ले आए और पार्किन के बिस्तर पर रखी कैप में उसे डाल दिया। सभी को मालूम था कि पार्किन सांप और इसी तरह के अन्य जानवरों से बड़ा डरते हैं। संयोग से उस कैप में पार्किन ने अपने पैसे रखे हुए थे और जब कुछ पेमेंट करने के लिए कैप को हाथ लगाया तो एकदम उछल पड़े। जो देखा- उसे सांप समझ लिया था। भयानक तरीके से चिल्लाए वे। पार्किन ने कसम खाई कि जिसने भी ये सब किया है अगर उसका पता चला तो वे उसकी आंखें काली कर देंगे।

धीरे-धीरे और लोगों को भी क्वॉरंटीन के लिए वहां लाया जाता रहा और गिनती बढ़ने से माहौल अच्छा हो गया। रग्बी गेंद किसी के पास थी तो रग्बी खेलने लगे। पार्किन ने सभी का मनोरंजन किया- वे गाने गाते थे। उस वक्त सोशल डिस्टेंसिंग नहीं होती थी। जो ठहरे थे उनमें महिलाओं की गिनती बड़ी कम थी- इसलिए सभी एक दूसरे से खुल कर मजाक कर रहे थे। एक हफ्ता निकल गया।

इसका नुक्सान ये हुआ कि क्रिकेट की प्रैक्टिस नहीं हो पाई। टूर के सबसे पहले मैच से सिर्फ एक दिन पहले प्रैक्टिस की। पर्थ में टूर मैच जो तीन दिन का था- उसे एक दिन के मैच में बदल दिया। वारविक आर्मस्ट्रांग की ऑस्ट्रेलिया टीम ने तब टेस्ट सीरीज में मेहमानों को 5-0 से अपमानजनक हार दी थी। क्या ये सब उस क्वारंटीन का नतीजा था जिसने टीम की प्रैक्टिस की लय बिगाड़ दी।

ये मौजूदा दौर से पहले की एकमात्र मिसाल है जब कोई इंटरनेशनल टीम क्वारंटीन में रही थी। वह इतना भयानक अनुभव नहीं था- इसलिए उसे इतिहास में जल्दी ही भुला दिया गया।


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